१)मैंने यूरोप और एशिया के सभी धर्मों का अध्ययन किया है,परन्तु मुझे उन सब में हिन्दू धर्म सर्वश्रेष्ठ दिखाई देता है| मेरा विश्वास है की इसके सामने एक दिन समस्त जगत को सर झुकाना पड़ेगा.मानव जाती के अस्तित्व के प्रारंभ के दिनों से लेकर पृथ्वी पर जहाँ जीवित मनुष्यों के सब प्रकार के स्वप्न साकार हुए हैं वह एकमात्र स्थान है भारत|
- रोमां रोलां(फ्रेंच विद्वान)
२)मैंने ४० वर्षों तक विश्व के सभी बड़े धर्मों का अध्ययन करके पाया की हिन्दू धर्म के सामान पूर्ण,महँ और वैज्ञानिक धर्म कोई नहीं है|यदि आप हिन्दू धर्म छोड़ते हैं तो आप अपनी भारत माता के ह्रदय में छुरा भोंकते हैं|यदि हिन्दू ही हिन्दू धर्म को न बचा सके तो और कौन बचाएगा?यदि भारत की संतान अपने धर्म पर दृढ़ न रही तो कौन इस धर्म की रक्षा करेगा?
- डा.एनी बेसेंट(इंग्लिश विद्वान)
३)जब हम पूर्व की और उसमे भी शिरोमानिस्वरूप भारत की साहित्यिक एवं दार्शनिक महँ कृतियों का अवलोकन करते हैं,तब हमे ऐसे अनेक गंभीर सत्यों का पता चलता है,जिनकी उन निष्कर्षों से तूलना करने पर की जहाँ पहुँच कर यूरोपीय प्रतिभा कभी-कभी रुक गयी ,हमे पूर्व के आगे घुटने टेक देने पड़ते हैं-विक्टर कजिन्स(अमेरिकेन इतिहासकार)
४)जीवन को ऊँचा उठाने वाला उपनिषदों के समान दूसरा कोई अध्ययन का विषय संपूर्ण दुनिया में नहीं है|इनसे मेरे जीवन को शांति मिली है,इन्ही से मुझे मृत्यु के समय भी शांति मिलेगी|-शापन्हार(जर्मन पंडित)
५)उपनिषदों में वर्णित पूर्वी आदर्शवाद के प्रचुर प्रकाशपुंज की तुलना में यूरोपवासियों का उच्चतम तत्वज्ञान ऐसा लगता है जैसे दोपहर के सूर्य के व्योम्व्यापी प्रकाश की पूर्ण प्रखरता में टिमटिमाती हुई अनाल्शिखा की कोई चिंगारी जिसकी अस्थिर और निस्तेज ज्योति ऐसी हो रही है मानो,अब बुझी की अब बुझी|
६)उपनिषदों की दार्शनिक धाराएँ न केवल भारत में ,संभवतः संपूर्ण विश्व में अतुलनीय है|-पॉल ड्युसन(अमेरिका)
७)यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पायथागोरस ,दोनों ने दर्शनशास्त्र का ज्ञान भारतीय गुरुओं से प्राप्त किया था|-मोनियर विलियम्स(प्रसिद्द दार्शनिक )
८)पाश्चात्य दर्शनशास्त्र के आदिगुरू आर्य महर्षि है,इसमें संदेह नहीं|-लैबनिट्ज़(जर्मन इतिहासकार)
९)प्राचीन युग की सभी स्मरणीय वस्तुओं में भगवद्गीता से श्रेष्ठ कोई भी वास्तु नहीं है|गीता के साथ तुलना करने पर जगत का समस्त आधुनिक ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है|मैं नित्य प्रातःकाल अपने ह्रदय और बुद्धि को गीता रूपी पवित्र जल में स्नान कराता हूँ|-एच.डी.थोरो(अमेरिकी दार्शनिक)
१०)भारतवर्ष का धर्मग्रन्थ गीता में बुद्धि की प्रखरता,आचार की उत्कृष्टता और धार्मिक उत्साह का एक अपूर्व मिश्रण उपस्थित करता है|-डा.मेक्नोक
- रोमां रोलां(फ्रेंच विद्वान)
२)मैंने ४० वर्षों तक विश्व के सभी बड़े धर्मों का अध्ययन करके पाया की हिन्दू धर्म के सामान पूर्ण,महँ और वैज्ञानिक धर्म कोई नहीं है|यदि आप हिन्दू धर्म छोड़ते हैं तो आप अपनी भारत माता के ह्रदय में छुरा भोंकते हैं|यदि हिन्दू ही हिन्दू धर्म को न बचा सके तो और कौन बचाएगा?यदि भारत की संतान अपने धर्म पर दृढ़ न रही तो कौन इस धर्म की रक्षा करेगा?
- डा.एनी बेसेंट(इंग्लिश विद्वान)
३)जब हम पूर्व की और उसमे भी शिरोमानिस्वरूप भारत की साहित्यिक एवं दार्शनिक महँ कृतियों का अवलोकन करते हैं,तब हमे ऐसे अनेक गंभीर सत्यों का पता चलता है,जिनकी उन निष्कर्षों से तूलना करने पर की जहाँ पहुँच कर यूरोपीय प्रतिभा कभी-कभी रुक गयी ,हमे पूर्व के आगे घुटने टेक देने पड़ते हैं-विक्टर कजिन्स(अमेरिकेन इतिहासकार)
४)जीवन को ऊँचा उठाने वाला उपनिषदों के समान दूसरा कोई अध्ययन का विषय संपूर्ण दुनिया में नहीं है|इनसे मेरे जीवन को शांति मिली है,इन्ही से मुझे मृत्यु के समय भी शांति मिलेगी|-शापन्हार(जर्मन पंडित)
५)उपनिषदों में वर्णित पूर्वी आदर्शवाद के प्रचुर प्रकाशपुंज की तुलना में यूरोपवासियों का उच्चतम तत्वज्ञान ऐसा लगता है जैसे दोपहर के सूर्य के व्योम्व्यापी प्रकाश की पूर्ण प्रखरता में टिमटिमाती हुई अनाल्शिखा की कोई चिंगारी जिसकी अस्थिर और निस्तेज ज्योति ऐसी हो रही है मानो,अब बुझी की अब बुझी|
६)उपनिषदों की दार्शनिक धाराएँ न केवल भारत में ,संभवतः संपूर्ण विश्व में अतुलनीय है|-पॉल ड्युसन(अमेरिका)
७)यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पायथागोरस ,दोनों ने दर्शनशास्त्र का ज्ञान भारतीय गुरुओं से प्राप्त किया था|-मोनियर विलियम्स(प्रसिद्द दार्शनिक )
८)पाश्चात्य दर्शनशास्त्र के आदिगुरू आर्य महर्षि है,इसमें संदेह नहीं|-लैबनिट्ज़(जर्मन इतिहासकार)
९)प्राचीन युग की सभी स्मरणीय वस्तुओं में भगवद्गीता से श्रेष्ठ कोई भी वास्तु नहीं है|गीता के साथ तुलना करने पर जगत का समस्त आधुनिक ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है|मैं नित्य प्रातःकाल अपने ह्रदय और बुद्धि को गीता रूपी पवित्र जल में स्नान कराता हूँ|-एच.डी.थोरो(अमेरिकी दार्शनिक)
१०)भारतवर्ष का धर्मग्रन्थ गीता में बुद्धि की प्रखरता,आचार की उत्कृष्टता और धार्मिक उत्साह का एक अपूर्व मिश्रण उपस्थित करता है|-डा.मेक्नोक
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