Bharat mata

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Sunday, May 22, 2011

ऐटाबाद में अमेरिका की कारवाई व विश्व राजनीति की बदलती परिस्थितियां

ऐटाबाद  में अमेरिका द्वारा सीधी कारवाई करने के बाद निश्चय ही अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में खटास आई है.पिछले एक दशक से अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद के विरुद्ध कारवाई के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराता रहा है. अब तक २० अरब डॉलर की सहायता अमेरिका उसे पिछले १० सालों में दे चुका है. मगर ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद विश्व राजनीति में स्थितियां कुछ बदली है. यहाँ इस फेरबदल में मुख्या रूप से ४ देश सीधे तौर पे प्रभावित हो रहे है.वे चार देश है- अमेरिका, भारत, पाकिस्तान, और चाइना.
पाकिस्तान - पाकिस्तान में सत्ता के कई केंद्र है. जहां तक सरकार की बात है ,वह बुरी तरह से फंस गयी है.एक तरफ तो पूरे विश्व के सामने उसका आतंकवाद के खिलाफ  झूठा चेहरा सामने आ गया है. इस वजह से वह यूरोपीय देशों व अमेरिका के सवालों का जवाब नहीं दे पा रहा. पूरे विश्व से , आतंकवाद के खात्मे में सहायता करने के वादे कर , वह उनकी सहायताओं का मज़ा लेता रहा , और उसे भारत के खिलाफ भी बेरोकटोक इस्तेमाल करता रहा , और साथ ही साथ आतंकवादियों को अपने देश में पनाह भी देता रहा. मगर अब उसके लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं रहा है. इसलिए उसे अपने भविष्य की चिंता भी सताने लगी है.
 दूसरी और पकिस्तान की जनता सरकार के खिलाफ हो गयी है. जो लोग आतंकवाद के विरुद्ध थे ,वे यह जानकार विस्मित है की ओसामा को उनकी ही सरकार ने छुपा कर रखा था ,और जो लोग जिहाद के समर्थक है ,उन्हें तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा की अमेरिका को ऐसी कारवाई की इजाज़त पाकिस्तान की सरकार ने कैसे दे दी? और अगर यह सब बिना इज़ाज़त किया गया है ,तो फिर अब भी पाकिस्तान सरकार क्यों अमेरिका को अफ़गानिस्तान  में सहायता बंद नहीं कर रहा? क्यों सरकार चुप है?पाकिस्तान की सरकार को इस मुसीबत से निकलने के लिए चाइना का ही आसरा दिख रहा है .वह एक ओर चाइना से अपनी घनिष्टता बढ़ा कर सामरिक व आर्थिक सहायता सुनिश्चित करना चाहता है, वही दूसरी ओर पश्चिमी देशों के दबाव से भी बाहर निकलना चाहता है. उसका फायदा भी इसी में है की वो भारत और पश्चिमी देशों के खिलाफ चाइना को हथियार बनाये. और उस सन्दर्भ में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री युसूफ राजा गिलानी की चाइना यात्रा और अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है.
चाइना - चाइना के लिए, भारत पर दबाव बनाये रखने के लिए और खाड़ी के देशों और यूरोपीय देशों तक सरल मार्ग बनाने के लिए पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण कड़ी है. चाइना हमेशा से यह चाहता रहा है की पाकिस्तान पश्चिमी देशों को छोड़ उस पर निर्भर हो जाए, ताकि वह उसका अपनी मनमाफिक उपयोग कर सके. ऐसे में वह इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता ,और इसका संकेत उसने पकिस्तान के साथ कई महत्वपूर्ण करार कर के दे दिया है. उसने तो अमेरिका को चेतावनी भी दे दी है की भविष्य में अगर कोई ऐसी कारवाई की गयी तो उसे पाकिस्तान पर नहीं बल्कि चाइना पर हमला माना जाएगा.
अमेरिका - अमेरिका ने ओसामा को मार कर अपनी भड़ास जरूर निकाल ली है.वो उसे १० सालों से ढूंढ रहा था ,और उसके खात्मे के लिए अब तक अरबों-खरबों डॉलर बहा चुका था.इसलिए अमेरिका को निश्चय ही कुछ राहत पहुंची है. मगर वह यह भी अच्छी तरह से जानता है की ओसामा की मौत से आतंकवाद का खात्मा नहीं हो गया है. आज भी उसके सैनिक अफगानिस्तान को तालिबानियों से मुक्त करने में लगे हुए है , और इसके लिए पाकिस्तान की सहायता बहुत ज़रूरी है. इसलिए अमेरिका कई विरोधों के बावजूद भी पकिस्तान को सहायता देना नहीं रोक सकता. उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा की पाकिस्तान के परमाणु हथियार किसी भी कीमत पर आतंकवादियों के हाथ न लगने  पाए.
 और इन सब के लिए उसे पकिस्तान के साथ झूठी ही सही पर दोस्ती निभानी होगी.

अमेरिका यह अच्छी  तरह से जानता है की पाक-चीन गठबंधन मध्य एशिया ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के हित में नहीं है. और ऐसा होने से रोकने के लिए उसे पाकिस्तान को चाइना की गोद में बैठने से रोकना ज़रूरी है. वही दूसरी ओर भारत के साथ अपने संबंधों को और ज्यादा मज़बूत बनाना भी ज़रूरी है.क्योंकि चाइना के साथ मुकाबले में उसे भारत से अच्छा  साथी नहीं मिल सकता.
भारत - भारत के लिए यह बहुत ही ख़ुशी की बात है की अमेरिका ने पाकिस्तान में सीधी कारवाई करने से परहेज़ नहीं किया, व पकिस्तान की ही सरजमीं पर ओसामा को मार गिरा दिया. भारत के लिए यह ख़ुशी की बात इस लिए भी है की अब कम से कम विश्व के सामने पाकिस्तान का असली चेहरा सामने आ गया है. भले ही इसके निकट भविष्य में कोई मायने न हो ,पर भविष्य के लिहाज़ से यह बहूत ही महत्वपूर्ण है. 
भारत के लिए अभी जो सबसे बड़ी चिंता की बात उभर कर आ रही है ,वो है पाक-चीन गठबंधन. चाइना और पकिस्तान ,दोनों भारत के खिलाफ शत्रु भाव रखते है, व समय आने पर एक हो कर हमला भी कर सकते है. ऐसी स्थिति से निपटना भारत के अकेले के बस की बात नहीं होगी. इसलिए उसे एक विश्वसनीय सहयोगी की आवश्यकता है जो चीन-पाक गठबंधन के सामने उसे मजबूती प्रदान कर सके ,और वो केवल अमेरिका ही हो सकता है.ऐसे में आगे भारत को अमेरिका से नजदीकियां और बढानी होगी व अपनी सुरक्षा व्यवस्था को भविष्य के संभावित खतरे को ध्यान में रखते हुए और मज़बूत करना होगा .

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